आईये अब हम जानते हैं sukh-aur-dukh-kya-hai
हम में से लगभग सभी लोग यही कामना करते हैं की हमारे जीवन में सिर्फ सुख मिले दुःख मेरे आस पास भी न भटके क्योंकि जब हमे सुख मिलता है | तो हम ख़ुशी से झूम उठते हैं और जब दुःख मिलता है तो हम मानसिक तनाव से ग्रसित हो जातें है या फिर ये कहलो की हम दुखी हो जाते हैं |
जो व्यक्ति बुरे होते हैं वो किसी को दुःख दे कर के खुश हो जातें है |और जो व्यक्ति अच्छे होतें है वो किसी को सुख दे करके खुश हो जातें है |
- ताजुक की बात तो ये है की इन्सान ‘सुख और दुःख’ दोनों में ही अपना संतुलन खो देता है | आप ने सुना ही होगा की ज्यादा ख़ुशी से इन्शान पागल भी हो जातें है | और तरह – तरह के हरकते करते रहते है | और ज्यादा दुःख में भी इंशान पागलो वाली हरकते करते रहते है | कभी मरने की बात तो कभी घर से भाग जाने की बात करतें रहते हैं |
- जब आप दुखी होंगे तो आप को कोई भी काम करने में मन नहीं लगेगा | और जब आप सुखी होंगे तो हर काम करने में मन लगेगा |
वास्तव में sukh-aur-dukh-kya-hai ?
सुख और दुःख एक दुसरे के पूरक है | दुःख हमे शिक्षा देती है | और सुख हमारा इम्तिहान लेती है | सुख और दुःख का चक्र हमेशा चलता ही रहता है | न सदा सुख रहेगा और न सदा दुःख रहेगा इस लिए दुःख मिले तो घबराना मत और सुख मिले तो इतराना मत | (जो होता है अच्छे के लिए होता है | ऐसा मानकर सुख और दुःख दोनों दोनों को झेलना चाहिए )
- सुख और दुःख अपने-अपने कर्म के अनुसार ही मिलता है | मान लो बे वजह किसी को जान से मार देना, हिंसा फैलाना ये सब बुरे कर्म है | इसके बदले तुम्हे दुःख के रूप में भोगना ही पड़ेगा |
तो आप समझ गये होंगे की sukh-aur-dukh-kya-hai