आइए जानतें है garib-ma-baap-ka-dard
साथियों हम भारत के उस अर्थ व्यवस्था में जी रहें हैं | जहां कल क्या खाना है उसके बारें में आज सोचना पड़ता है | क्योंकि भारत में बढ़ती तेज रफ्तार की जनसंख्या के कारण करोरो हाँथ वेरोजगार हैं | जिस देश में 99 रूपया एक आदमी के पास है |और 1 रुपया में 99 आदमी जी रहा है | ऐसी परिस्थिति में जहां बचों के कॉपी किताब और कलम की कीमत भी माँ बाप बड़ी मुश्किल से ही निकाल पातें हैं | ऐसी परिस्थिति में जो माँ बाप अपने बच्चों को पढ़ातें लिखातें हैं उन बच्चों से माता पिता की बहुत अपेक्षा और उम्मीद रहती है की पढ़ लिख कर मेरा बच्चा आर्थिक रूप से उन्नत होगा | और साथ-साथ हमारी गरीबी भी दूर होगी | और मैं अपने सपनो के संसार को साकार कर पाउँगा |
- बद किस्मत
ऐसा की भारत की गलत अर्थ निति और लापरवाह सरकार की नीतियों के कारण आज करोरों युवा का सपना चकना चूर हो रहा है | और अपने माँ बाप के सजाएँ हुए सपनो पर भी कुठारघात साबित हो रहा है | जिसके कारण युवा मनोबल भी नकारात्मक विचारों से प्रभावित होकर गलत दिशा के तरफ जा रहें हैं | लेकिन उन करोरो माँ बाप का क्या जिन्होंने अपनी मौलिक सुब्धाओ को भी पूरा न करतें हुयें अपने बच्चों को सारी शुख सुभिदा प्रदान किया | इस आसा के साथ की हमारे कुशल बच्चों को भारत सरकार रोजगार देगी और हमारी गरीबी दूर होने के साथ साथ भारत की गरीबी भी दूर हो जाएगी | मै उन तमाम बेरोजगार नौ जवानो से अपील करता हूँ की आप अपने अन्दर के झिझक और शर्म को दूर कर जो काम मिले उसे करने का प्रयाश करें | और अपने माँ बाप की तख्लिफों को दूर करने का प्रयाश करें | और अपने हालत और परिस्थी को समझने की कोशिश करें | मै उन करोरो माता पिता से निवेदन पूर्वक कहता हूँ की आपने जिस धीरज और आशा के साथ अपने बच्चों को पढ़ायें लिखायें वो एक दिन अपने जीवन में कामयाब होगा और आप की गरीबी निश्चित ही दूर होगी |
मुझे उम्मीद है garib-ma-baap-ka-dard आप समझ गएँ होंगे |